تطوير الذات
बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध लेखक बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून, 1838 ई. को बंगाल के 24 परगना जिले के कांठल पाड़ा नामक गाँव में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के शीर्षस्थ उपन्यासकार है। उनकी लेखनी से बांग्ला साहित्य तो समृद्ध हुआ ही है, हिन्दी भी उपकृत हुई है। वे ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त थे। वे भारत के एलेक्जेंडर ड्यूमा माने जाते हैं। इन्होंने 1865 में अपना पहला उपन्यास दुर्गेशनन्दिनी लिखा। बंकिमचन्द्र के दूसरे उपन्यास कपाल कुण्डला, मृणालिनी, विष वृक्ष, कृष्णकांत का वसीयत नामा, रजनी, चन्द्रशेखर आदि प्रकाशित हुए। राष्ट्रीय दृष्टि से आनंदमठ उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसी में सर्वप्रथम ‘वन्दे मातरम्’ गीत प्रकाशित हुआ था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। लोगों ने यह समझ लिया कि विदेशी शासन से छुटकारा पाने की भावना अंग्रेजी भाषा या यूरोप का इतिहास पढ़ने से ही जागी। इसका प्रमुख कारण था अंग्रेजों द्वारा भारतीयों का अपमान और उन पर तरह-तरह के अत्याचार। बंकिमचन्द्र के दिए ‘वन्दे मातरम्’ मंत्र ने देश के सम्पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम को नई चेतना से भर दिया। एक ओर विदेशी सरकार की सेवा और दूसरी ओर देश के नवजागरण के लिए उच्चकोटि के साहित्य की रचना करना यह काम बंकिमचन्द्र के लिए ही सम्भव था। आधुनिक बांग्ला साहित्य के राष्ट्रीयता के जनक इस नायक का 8 अप्रैल, 1894 ई. को देहान्त हो गया। रवीन्द्रनाथ ने एक स्थान पर कहा है- राममोहन ने बंग साहित्य को निमज्जन दशा से उन्नत किया, बंकिमचन्द्र ने उसके ऊपर प्रतिभा प्रवाहित करके स्तरबद्ध मूर्ति को अपसरित कर दी। बंकिमचन्द्र के कारण ही आज बंगभाषा मात्र प्रौढ़ ही नहीं, उर्वरा और शस्यश्यामला भी हो सकी है।
© 2021 Prabhakar Prakshan (كتاب ): 9789390963812
تاريخ الإصدار
كتاب : 3 نوفمبر 2021
تطوير الذات
बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध लेखक बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून, 1838 ई. को बंगाल के 24 परगना जिले के कांठल पाड़ा नामक गाँव में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के शीर्षस्थ उपन्यासकार है। उनकी लेखनी से बांग्ला साहित्य तो समृद्ध हुआ ही है, हिन्दी भी उपकृत हुई है। वे ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त थे। वे भारत के एलेक्जेंडर ड्यूमा माने जाते हैं। इन्होंने 1865 में अपना पहला उपन्यास दुर्गेशनन्दिनी लिखा। बंकिमचन्द्र के दूसरे उपन्यास कपाल कुण्डला, मृणालिनी, विष वृक्ष, कृष्णकांत का वसीयत नामा, रजनी, चन्द्रशेखर आदि प्रकाशित हुए। राष्ट्रीय दृष्टि से आनंदमठ उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसी में सर्वप्रथम ‘वन्दे मातरम्’ गीत प्रकाशित हुआ था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। लोगों ने यह समझ लिया कि विदेशी शासन से छुटकारा पाने की भावना अंग्रेजी भाषा या यूरोप का इतिहास पढ़ने से ही जागी। इसका प्रमुख कारण था अंग्रेजों द्वारा भारतीयों का अपमान और उन पर तरह-तरह के अत्याचार। बंकिमचन्द्र के दिए ‘वन्दे मातरम्’ मंत्र ने देश के सम्पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम को नई चेतना से भर दिया। एक ओर विदेशी सरकार की सेवा और दूसरी ओर देश के नवजागरण के लिए उच्चकोटि के साहित्य की रचना करना यह काम बंकिमचन्द्र के लिए ही सम्भव था। आधुनिक बांग्ला साहित्य के राष्ट्रीयता के जनक इस नायक का 8 अप्रैल, 1894 ई. को देहान्त हो गया। रवीन्द्रनाथ ने एक स्थान पर कहा है- राममोहन ने बंग साहित्य को निमज्जन दशा से उन्नत किया, बंकिमचन्द्र ने उसके ऊपर प्रतिभा प्रवाहित करके स्तरबद्ध मूर्ति को अपसरित कर दी। बंकिमचन्द्र के कारण ही आज बंगभाषा मात्र प्रौढ़ ही नहीं, उर्वरा और शस्यश्यामला भी हो सकी है।
© 2021 Prabhakar Prakshan (كتاب ): 9789390963812
تاريخ الإصدار
كتاب : 3 نوفمبر 2021
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