दन्तिल वैश्य और राजसेवक

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اللغة الهندية
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वर्धमान नाम के एक नगर में दन्तिल नामक एक बहुत बड़ा व्यापारी सारे नगर का नायक बनकर रहता था। उसने अच्छी तरह परोपकार और राज्य के कार्य करके उस नगर के रहने वाले लोगों और राजा को प्रसन्न किया था। उसके समान चतुर पुरुष जो राजा और प्रजा दोनों को ही प्रिय हो किसी ने कभी नहीं देखा था और ना ही सुना था।

कुछ समय बाद दन्तिल का विवाह हुआ। उस अवसर पर उसने सारे नगर के रहने वालों और राजसभा के लोगों को बहुत सम्मान के साथ निमंत्रण देकर बुलवाया और भोजन, वस्त्र आदि से उनका सत्कार किया। विवाह के बाद उसने रानियों सहित राजा को भी अपने यहाँ बुलाकर सत्कार किया, किन्तु उस राजा के घर की सफाई करने वाले गोरम्भ नामक राजसेवक को घर आने पर भी दन्तिल ने अनुचित स्थान पर बैठने के कारण धक्का देकर निकाल दिया। उस दिन से गोरम्भ लंबी सांस लेता हुआ अपमान के कारण रात को भी नहीं सोता था और सोचता राहत था की किस तरह इस दन्तिल पर राजकृपा को खत्म करूँ।

एक दिन सुबह के समय जब राजा हल्की नींद में था, तब उसके पलंग के पास झाड़ू लगता हुआ गोरम्भ बोला, “अहो! दन्तिल ऐसा ढीठ है की राजरानी का आलिंगन करता है”।

यह सुनकर राजा घबराकर उठ गया और उससे बोल, “गोरम्भ! जो तुमने कहा, क्या वह सच है? क्या महारानी को दन्तिल ने आलिंगन किया है?” गोरम्भ बोला, “देव! रात में जुआ खेलने के कारण मैं सारी रात जागता रहा। अब मुझे बहुत नींद आ रही है। इसलिए पता नहीं मैं क्या कह गया।“

राजा ने ईर्ष्या के कारण मन ही मन कहा, “यह हमारे घर में बेरोक-टोक आने वाला है और दन्तिल भी वैसे ही आता-जाता है। हो सकता है कि इसने कभी महारानी का आलिंगन होते देखा हो।“

इस प्रकार राजा दुःखी होकर उसी दिन से दन्तिल से अप्रसन्न रहने लगा। राजद्वार में भी उसका प्रवेश बंद हो गया। दन्तिल अचानक राजा के बदले व्यवहार को देखकर सोचने लगा, “मैंने राजा का तथा अन्य किसी राजसंबंधी का सपने में भी अनिष्ट नहीं किया, तब क्यों राजा मुझसे नाराज हैं”।

एक दिन दन्तिल को राजद्वार में चुप खड़ा देखकर गोरम्भ हंसकर द्वारपालों से बोला, “द्वारपालों! राजा की कृपा से दन्तिल अत्यंत समर्थ हैं। इनको रोका तो मेरी तरह तुम्हें भी धक्के पड़ेंगे।“

यह सुनकर दन्तिल सोचने लगा, “यह निश्चय ही इस गोरम्भ की करतूत है। राजसेवक का सम्मान करना चाहिए क्योंकि वह किसी से नहीं हारता।“

रात में दन्तिल ने गोरम्भ को घर बुलाया वहाँ उसको उपहार देकर उसका सम्मान करते हुए बोला, “भद्र! मैंने तुमको उस दिन क्रोध के कारण नहीं निकाला था। उस समय तुम अनुचित स्थान पर बैठे थे, इसी कारण तिरस्कृत किए गए थे। मुझे क्षमा करो।“

सुंदर उपहार और सम्मान प्राप्तकर संतुष्ट होकर गोरम्भ बोला, “श्रेष्ठ! मैंने वह सब क्षमा कर दिया। इस सम्मान के बदले में अब तुम मेरी बुद्धिमानी और राजकृपा देखना।“ यह कहकर संतुष्ट मन से वह वहाँ से चला गया।

दूसरे दिन गोरम्भ राजगृह में जाकर बोला, “हमारे राजा बड़े महान हैं, लेकिन उनकी ये कैसी अज्ञानता कि माल-त्याग करते समय ककड़ी खाते हैं।“ यह सुनकर राजा आश्चर्य से बोला, “अरे गोरम्भ! कैसी अनहोनी बात कर रहे हो? घर का कर्मचारी समझकर तुम्हें मार नहीं रहा हूँ। क्या तुमने कभी मुझे ऐसा करते हुए देखा है?”

गोरम्भ बोला, “स्वामी! क्षमा करें। जुआ खेलने के कारण रात भर जागता रहा और अभी नींद में होने के कारण पता नहीं मुँह से क्या निकाल गया।“

यह सुनकर राजा ने सोचा, “मैंने तो जीवन में कभी भी शौच करते समय ककड़ी नहीं खायी, परंतु यह निरर्थक बात इस मूर्ख ने कह दी। इसी प्रकार इसने दन्तिल पर भी झूठा आक्षेप लगाया होगा। मैंने बेकार में ही उसका सम्मान खत्म कर दिया।“

ऐसा सोचकर राजा ने दन्तिल को राजमहल में बुलाकर उसका सम्मान किया और उसके पुराने अधिकार उसे वापस दे दिए।

इसीलिए कहते हैं कि गर्व के वसीभूत होकर दूसरों का अपमान नहीं करना चाहिए। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices


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