तय नियति है तो होनी होगी वही
बँध गए इसमें तो शेष परिणाम है
जनमेजय का नागयज्ञ के पिछले अंक में आपने जाना कि किस तरह जनमेजय को सरमा ने शाप दिया और जनमेजय ने अपने पुरोहित की खोज कैसे की। इस अंक में हम चर्चा करेंगे कि किस तरह जनमेजय को नागयज्ञ करने की प्रेरणा मिली और उत्तंक का तक्षक से द्वेष कैसे हुआ।
महर्षि आयोदधौम्य के तीन शिष्य थे — उपमन्यु, आरुणि पांचाल तथा वेद। ऋषि वेद ने अपने गुरु आयोदधौम्य की आज्ञा का पालन करते हुए उनकी बहुत सेवा की जिसके परिणामस्वरूप वे स्नातक होकर गुरुगृह से लौट आए। गृहस्थाश्रम में आकर आचार्य वेद के पास तीन शिष्य रहा करते थे। उन्होंने कभी अपने शिष्यों से उस भाँति का कोई कार्य नहीं कराया था जो उन्हें अपनी छात्रावस्था में करना पड़ा। जनमेजय और पौष्य ने आचार्य वेद को अपना उपाध्याय बना लिया। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
Step into an infinite world of stories
English
Singapore