जरासन्ध मगध का शासक था और श्रीकृष्ण के जीवन से उसका गहरा सम्बन्ध था। इस कहानी में हम जरासन्ध के बारे में जानेंगे और पता लगाएँगे कि उसका श्रीकृष्ण से क्या रिश्ता था।
मगध पर जब राजा बृहद्रथ का राज्य था तब उसकी प्रजा बहुत खुश थी। बृहद्रथ का विवाह काशी की जुड़वा राजकुमारियों से हुआ और वो एक आनंदमय गृहस्थ जीवन में बँध गया। जैसे-जैसे समय बीतता गया राजा के मन में पुत्र प्राप्ति की कामना तीव्र होती गई।
अन्ततः बृहद्रथ ने निर्णय लेकर अपनी पत्नियों को इस बारे में बताने के लिए बुलाया। वो बोला, "प्रियाओं! मेरी बात ध्यान से सुनो। हमारी सन्तान की कामना पूर्ण करने के लिए मैंने वन-गमन करने का निर्णय लिया है।" बृहद्रथ की बात सुनकर रानियों को काफ़ी धक्का लगा किन्तु उन्होंने बृहद्रथ की बात मान ली।
राजा ने पैदल ही अपना राज्य छोड़ दिया और वन-गमन का पथ अपनाकर ऋषि चण्डकौशिक की शरण में गया। राजा ने सच्चे मन से ऋषि की सेवा प्रारम्भ की और अपने कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाए। ऋषि इस समर्पण से काफी प्रसन्न हुए और राजा से वर माँगने को कहा, "हे राजन! मैं तुम्हारे समर्पण से बहुत प्रसन्न हुआ। तुमने एक राजा होकर भी निम्नतम कार्यों को भी पूरी लगन के साथ किया। मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहता हूँ। बताओ तुम्हारी क्या इच्छा है?"
राजा बृहद्रथ ने ऋषि चण्डकौशिक की चरण वन्दना करते हुए कहा, "हे ऋषिवर! मैं एक सन्तानहीन राजा हूँ। मुझे सिर्फ़ एक सन्तान की चाह है, जो मेरे राज्य का वारिस बने। मैं बस इतनी ही इच्छा रखता हूँ। मैं एक पिता बनना चाहता हूँ। हे ऋषिश्रेष्ठ! मुझे सन्तान प्राप्ति का वरदान दीजिए।"
ऋषि ने राजा पर दयाभाव दिखाते हुए उसे एक फल दिया और कहा कि ये फल अपनी किसी भी एक पत्नी को दे देना। राजा उस दैवीय फल को लेकर वन से वापस अपने महल आ गया। राजा अपनी दोनों पत्नियों को खुश देखना चाहता था इसलिए उसने उस फल को दो भागों में बराबर बाँटकर अपनी पत्नियों को दे दिया। जिसके बाद उन दोनों के यहाँ आधी-आधी मृत सन्तानों ने जन्म लिया। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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