पांडवों के महाप्रयाण के बाद अर्जुन के पौत्र और अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित हस्तिनापुर के महाराज बने। स्वयं पाण्डव भाइयों के द्वारा शिक्षा प्राप्त परीक्षित सर्वगुण संपन्न महाप्रतापी राजा थे। परीक्षित गुरु कृपाचार्य और युयुत्सु के संरक्षण में भली भांति राजधर्म का पालन करते थे। परीक्षित का विवाह राजा उत्तर की पुत्री इरावती से हुआ और उनको जनमेजय, भीमसेन, श्रुतसेन और उग्रसेन नाम के चार पुत्र हुए।
कुलगुरु कृपाचार्य के सुझाव पर परीक्षित ने गंगा नदी के तट पर तीन अश्वमेध यज्ञ किए और समस्त विश्व में अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए दिग्विजय पर निकल गए। अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान एक जगह महाराज परीक्षित की भेंट एक गाय, एक बैल और एक ग्वाले से हुई। गाय बहुत ही दुर्बल थी और बैल केवल एक ही पैर पर खड़ा था तथा ग्वाला दोनों को मार रहा था।
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