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प्रजावर्ग को प्रसन्न रखना ही राजा का सनातन धर्म है। सत्य की रक्षा और व्यवहार की सरलता ही राजा का कर्तव्य है। जो प्रजा के धन का नाश न करे, उनको जो चाहिये वो समय पर उपलब्ध कराए, पराक्रमी, सत्यवादी और क्षमाशील बना रहे - ऐसा राजा कभी पथभ्रष्ट नहीं हो सकता। प्रजा की रक्षा न करने से बढ़कर राजाओं के लिये दूसरा कोई पाप नहीं है।
चातुर्वर्ण्यस्य धर्माश्च रक्षितव्या महीक्षिता।
धर्मसंकररक्षा च राज्ञां धर्मः सनातनः।।
राजा को चारों वर्णों के धर्मों की रक्षा करनी चाहिये और प्रजा को धर्म के मार्ग से भ्रमित होने से बचाना ही राजा का सनातन धर्म है।
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