पृथ्वीलोक पर वर्षों तक धर्मपूर्वक राज्य करने और शौर्य और वैभव अर्जित करने के बाद, ऐसा क्या हुआ कि महाराज नहुष को देवराज बनाना पड़ा। देखिये कैसा रहा देवराज नहुष का कार्यकाल?
युगों तक स्वर्गलोक पर शासन करने के बाद इंद्र को ऐश्वर्य का मोह लग चुका था और उनके मन में इस बात को लेकर के घमंड जाग गया। एक बार की बात है, इंद्रलोक में हमेशा की तरह ही उत्सव का माहौल था, देवी शची के साथ अपने आसन पर बैठे इंद्र नृत्य और गायन का आनंद ले रहे थे.देवता, ऋषि मुनि, मरुद गण, दिगपाल, गन्धर्व, नाग तथा अप्सराएं चारों ओर से देवराज इंद्र की वंदना करने में लगी हुई थी. पहले से ही अहंकार में चूर इंद्र इस जय जय कार से और फूले नहीं समा रहे थे। उस समय देवगुरु बृहस्पति जी का इंद्रलोक में आगमन हुआ, देवगुरु को आता हुआ देख कर भी न तो इंद्र ने उठ कर उनका अभिवादन किया और न ही बृहस्पति जी को आसन ग्रहण करने का न्योता दिया।
बृहस्पति जी को इस बात से अत्यंत बुरा लगा और उन्होंने उसी वक़्त इंद्रसभा परित्याग करने का निर्णय लिया। बृहस्पतिजी के जाने के बाद इंद्र को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह अपने गुरु से माफ़ी मांगने के लिए उनके निवास पर पहुंचे। लेकिन इंद्र ने वहां पहुंचने में देरी कर दी, देवराज के बर्ताव से रुष्ट होकर बृहस्पति जी कहीं जा चुके थे. अतएव दुखी मन से इंद्र वापस अपने महल लौट आये। असीम तपोबल के धनी बृहस्पति जी के इस तरह चले जाने से देवताओं की शक्ति लगभग आधी हो चुकी थी और हर बीतते समय के साथ वह और घटती जा रही थी। जैसे ही असुरों को इस बात का पता चला तो उन्होंने इस अवसर का फायदा लेते हुए स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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