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Poesia & Teatro
मीर तक़ी मीर : जिन्हें ख़ुख़ुदा-ए-सुखन कहा गया
‘रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ग़ालिब, कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था।
मिर्ज़ा ग़ालिब ने यह बात उस मीर तक़ी मीर के लिए कही, जिन्हें ख़ु दा-ए-सुखन यानी उर्दूर्दूर्दू शायरी का ख़ु दा कहा जाता है। रेख़्ता का मतलब शुरुआती उर्दू। यह मीर का ही प्रभाव था कि ग़ालिब को फ़ारसी छोड़कर तब की उर्दू ज़ुबान में लिखने को मज़बूर होना पड़ा । उस दौर में कुछ अन्य मशहूर शायर जैसे सौदा, मज़हर, नज़ीर अकबराबादी ने भी उर्दू में लिखा, लेकिन मीर का असर आम से लेकर ख़ास पर सबसे ज़्यादा था।
इस पुस्तक में शायर के संपूर्ण लेखन में से बेहतरीन शायरी का चयन है और पाठकों की सुविधा के लिए कठिन शब्दों के अर्थ भी दिए हैं।
© 2024 Sanage Publishing House (Ebook): 9789362057839
Data de lançamento
Ebook: 1 de janeiro de 2024
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