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रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि अर्थात प्रथम कवि भी कहते हैं और उनके द्वारा रचित श्रीरामकथा को प्रथम महाकाव्य। देखिए कैसे मिली वाल्मीकि जी को रामायण की रचना करने की प्रेरणा।
एक बार तपस्वी वाल्मीकि ऋषि की भेंट तीनों लोकों में भ्रमण करने वाले त्रिलोकज्ञाता देवर्षि नारद ने हुई। वाल्मीकि जी ने नारद मुनि से पूछा, “देवर्षि! इस समय विश्व में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी, धर्मानुसार आचरण करने वाले, प्राणिमात्र के हितैषी, विद्वान, समर्थ, धैर्यवान, क्रोध को वश में करने वाले, तेजस्वी, ईर्ष्या से शून्य और युद्ध में देवताओं को भी भयभीत करने वाले कौन हैं। हे महर्षि! क्या आप किसी ऐसे पुरुष को जानते हैं? कृपा कर मुझे उनके विषय में बतायें।“
वाल्मीकि जी की बात सुनकर त्रिकालदर्शी नारद मुनि प्रसन्न हुए और बोले, “हे मुनिवर! आपने जिन गुणों की बात कही है, वो सभी एक पुरुष में मिलन अत्यंत दुर्लभ है। किन्तु मैं आपको ऐसे एक गुणवान पुरुष के विषय में बताता हूँ। ध्यान से सुनिए।“
ऐसा कहकर नारद मुनि ने ऋषि वाल्मीकि को इक्ष्वाकु वंश में जन्मे श्रीरामचन्द्र का परिचय देते हुए हुए उनके जीवन की कथा संछिप्त में सुनाई। उन्होंने बताया किस प्रकार श्रीराम का जन्म अयोध्या में महाराज दशरथ के पुत्र के रूप में हुआ, कैसे उन्होंने ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के यज्ञ में उनकी सहायता की, किस प्रकार उनका विवाह मिथिला नरेश महाराज जनक की पुत्री जानकी से हुआ और कैसे उनको अपनी सौतेली माता कैकेयी के कारण वनवास में जाना पड़ा। नारद मुनि ने वाल्मीकि जी को रावण द्वारा सीता जी के अपहरण, सीता जी की खोज में श्रीराम और लक्ष्मण जी की हनुमान जी से भेंट, उनकी सुग्रीव से मित्रता और सुग्रीव की सहायता से सीता जी की खोज, नल द्वारा समुद्र पर पुल बंधे जाने और उसके पश्चात लंका पर आक्रमण कर दसग्रीव रावण का वध करने की कथा सुनाई।
देवर्षि नारद से यह वृत्तान्त सुनने के पश्चात वाल्मीकि जी ने अपने शिष्य भारद्वाज के साथ उनका पूजन किया। उसके बाद नारद मुनि विदा लेकर अकाशमार्ग में चले गए।
नारद मुनि को विदा करने के बाद वाल्मीकि ऋषि अपने शिष्य के साथ गंगा नदी से थोड़ी दूर पर स्थित तमसा नदी के तट पर पहुँचे, और नदी के शीतल जल में स्नान कर वहाँ विचरण करने लगे। उसी समय वाल्मीकि जी ने वन में विहार करते हुए मधुर ध्वनि करने वाले क्रौंच पक्षी का एक जोड़ा देखा। इतने में एक बहेलिये ने उनमें से नर पक्षी को मार दिया। जिसे देखकर मादा पक्षी करुण स्वर में विलाप करने लगी। इस प्रकार विलाप करती हुई क्रौंची को देखकर वाल्मीकि जी के मुख से अनायास ही यह शब्द निकले –
Release date
Audiobook: 14 December 2022
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रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि अर्थात प्रथम कवि भी कहते हैं और उनके द्वारा रचित श्रीरामकथा को प्रथम महाकाव्य। देखिए कैसे मिली वाल्मीकि जी को रामायण की रचना करने की प्रेरणा।
एक बार तपस्वी वाल्मीकि ऋषि की भेंट तीनों लोकों में भ्रमण करने वाले त्रिलोकज्ञाता देवर्षि नारद ने हुई। वाल्मीकि जी ने नारद मुनि से पूछा, “देवर्षि! इस समय विश्व में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी, धर्मानुसार आचरण करने वाले, प्राणिमात्र के हितैषी, विद्वान, समर्थ, धैर्यवान, क्रोध को वश में करने वाले, तेजस्वी, ईर्ष्या से शून्य और युद्ध में देवताओं को भी भयभीत करने वाले कौन हैं। हे महर्षि! क्या आप किसी ऐसे पुरुष को जानते हैं? कृपा कर मुझे उनके विषय में बतायें।“
वाल्मीकि जी की बात सुनकर त्रिकालदर्शी नारद मुनि प्रसन्न हुए और बोले, “हे मुनिवर! आपने जिन गुणों की बात कही है, वो सभी एक पुरुष में मिलन अत्यंत दुर्लभ है। किन्तु मैं आपको ऐसे एक गुणवान पुरुष के विषय में बताता हूँ। ध्यान से सुनिए।“
ऐसा कहकर नारद मुनि ने ऋषि वाल्मीकि को इक्ष्वाकु वंश में जन्मे श्रीरामचन्द्र का परिचय देते हुए हुए उनके जीवन की कथा संछिप्त में सुनाई। उन्होंने बताया किस प्रकार श्रीराम का जन्म अयोध्या में महाराज दशरथ के पुत्र के रूप में हुआ, कैसे उन्होंने ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के यज्ञ में उनकी सहायता की, किस प्रकार उनका विवाह मिथिला नरेश महाराज जनक की पुत्री जानकी से हुआ और कैसे उनको अपनी सौतेली माता कैकेयी के कारण वनवास में जाना पड़ा। नारद मुनि ने वाल्मीकि जी को रावण द्वारा सीता जी के अपहरण, सीता जी की खोज में श्रीराम और लक्ष्मण जी की हनुमान जी से भेंट, उनकी सुग्रीव से मित्रता और सुग्रीव की सहायता से सीता जी की खोज, नल द्वारा समुद्र पर पुल बंधे जाने और उसके पश्चात लंका पर आक्रमण कर दसग्रीव रावण का वध करने की कथा सुनाई।
देवर्षि नारद से यह वृत्तान्त सुनने के पश्चात वाल्मीकि जी ने अपने शिष्य भारद्वाज के साथ उनका पूजन किया। उसके बाद नारद मुनि विदा लेकर अकाशमार्ग में चले गए।
नारद मुनि को विदा करने के बाद वाल्मीकि ऋषि अपने शिष्य के साथ गंगा नदी से थोड़ी दूर पर स्थित तमसा नदी के तट पर पहुँचे, और नदी के शीतल जल में स्नान कर वहाँ विचरण करने लगे। उसी समय वाल्मीकि जी ने वन में विहार करते हुए मधुर ध्वनि करने वाले क्रौंच पक्षी का एक जोड़ा देखा। इतने में एक बहेलिये ने उनमें से नर पक्षी को मार दिया। जिसे देखकर मादा पक्षी करुण स्वर में विलाप करने लगी। इस प्रकार विलाप करती हुई क्रौंची को देखकर वाल्मीकि जी के मुख से अनायास ही यह शब्द निकले –
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Audiobook: 14 December 2022
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