'सत्य को परेशान किया जा सकता है, पराजित नहीं', ये शब्द राजस्थान में सियासी तूफान लाने वाले सचिन पायलट के हैं. कांग्रेस ने जब उन्हें डिप्टी सीएम और राज्य इकाई के अध्यक्ष पद से हटाया तो पायलट ने ये ट्वीट किया. लेकिन असली सच क्या है और इस लड़ाई में गहलोत या पायलट, असल में कौन पराजित होता दिख रहा है? राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर खतरा टल गया है या फिर पिक्चर अभी बाकी है? इन सभी सवालों का जवाब मिलना अभी बाकी है.
तीन दिनों की खींचतान और सीएम अशोक गहलोत के इंतजार के बाद आखिर राजस्थान सरकार के "को पायलट" को कुर्सी से उतार दिया गया. सचिन पायलट की बगावत के बाद मध्य प्रदेश की ही तरह राजस्थान के आसमान में भी संकट के काले बादल मंडराने लगे थे. लेकिन यहां अशोक गहलोत सीएम थे, जिन्होंने पहले से ही पूरी तैयारी कर रखी थी और वक्त आने पर तुरंत विधायकों को एकजुट कर बता दिया कि वो इतनी आसानी से सरकार हाथ से नहीं जाने देंगे. विधायक दल की बैठक में 107 विधायकों की मौजूदगी का दावा किया गया, जो पायलट के लिए एक हार की तरह साबित हुआ. लेकिन गहलोत सरकार खतरे के रेंज से बाहर नहीं निकली है, बस फिलहाल के लिए बची हुई है.
अब चाहे राजस्थान में सरकार बची हो या फिर उस पर खतरा हो, लेकिन कांग्रेस के लिए ये बड़ा सवाल है कि आखिर वो अपने बड़े और युवा नेताओं को इस तरह कैसे खोती जा रही है. क्या वो वक्त आ चुका है जब कांग्रेस में किसी बड़े बदलाव की जरूरत है? या फिर भारत की 'द ग्रैंड ओल्ड पार्टी' ने वाकई अब कोशिश करनी ही छोड़ दी है. आज पॉडकास्ट में, राजस्थान की हलचल और कांग्रेस को लेकर इन्हीं सवालों पर क्विंट के पोलिटिकल एडिटर, आदित्य मेनन से बात करेंगे. Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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