मूर्ख बंदर और सूचीमुख पक्षी
नानाम्यं नमतजे दारु नाश्मनि स्यात्क्षुरक्रिया ।
सूचीमुखं विजानीहि नाशिष्यायोपदिश्यते ॥
“नहीं झुकने योग्य लकड़ी नहीं झुकती, पत्थर से दाढ़ी नहीं बनाई जा सकती और अशिष्य को उपदेश नहीं दिया जा सकता। सूचीमुख इसका उदाहरण है।“
किसी पहाड़ी क्षेत्र के एक जंगल में बंदरों का एक झुंड रहता था। एक बार ठंड के मौसम में बारिश से भीग जाने के कारण वो ठिठुर रहे थे। किसी तरह ठंड से बचने के लिए उन्होंने आग जैसी दिखने वाली सुखी घास इकट्ठा की और उसमें फूँक मारकर गर्मी उत्पन्न करने का प्रयास करने लगे।
उनको इस प्रकार घास के ढेर के चारों ओर बैठकर निरर्थक प्रयास करता देखकर सूचीमुख नाम का एक पक्षी उनके पास आकर बोला, “ये कैसी मूर्खता कर रहे हो। ऐसे आग नहीं जलती। यहाँ सर्दी से ठिठुरने की बजाय किसी गुफा को ढूंढकर उसके अंदर बैठकर अपनी जान बचाओ। बदल उमड़ रहे हैं, अभी और भी बारिश होगी।“
उनमें से एक बूढ़े बंदर ने बोला, “तुम अपने काम से काम रखो। हमें तुम्हारे ज्ञान की आवश्यकता नहीं है।“
पक्षी ने बूढ़े बंदर की बात अनसुनी कर दी और बार-बार वही बात कहने लगा, “अरे बंदरों! इस प्रकार व्यर्थ का प्रयास मत करो।“
जब किसी तरह उसका प्रलाप शान्त नहीं हुआ तो अपना प्रयास व्यर्थ होने से क्रोधित एक बंदर ने उसके दोनों पंख पकड़कर उसे एक पत्थर पर पटक कर मार दिया।
इसीलिए कहते हैं कि अयोग्य को शिक्षा देने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
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