व्यंग्य प्रधान उपन्यास में ग्रामीण भारत और सरकारी तंत्र का जो खाका शुक्ल जी ने खींचा है, उसकी बराबरी नहीं हो सकती. ‘राग दरबारी’ के व्यंग्य आज के समय में भी उतने ही खरे और चोट करने वाले हैं. ऑडियोबुक के रूप में यह क़िताब हमारे चेहरे पर हँसी बिखेरती है, और साथ ही ज़ेहन में यह सवाल भी पैदा करती है कि इतने सालों में हमारे देश की प्रगति को वो रफ़्तार क्यों नहीं मिली, जिसके हम हक़दार हैं? अपनी किताब ‘राग दरबारी’ के लिए पहचाने जानेवाले शुक्ल जी ने कुल 25 किताबें लिखीं. उनकी पहली किताब ‘अंगद का पांव’ भी चर्चित हुई थी. मगर ‘राग दरबारी’ के साथ जो मुकाम शुक्ल जी ने पाया वो साहित्य में कम ही लोगों को मिला है. Satirical and deeply humane insight into the life of rural India.
© 2017 Storyside IN (Audiobook): 9788193361894
Release date
Audiobook: 17 August 2017
व्यंग्य प्रधान उपन्यास में ग्रामीण भारत और सरकारी तंत्र का जो खाका शुक्ल जी ने खींचा है, उसकी बराबरी नहीं हो सकती. ‘राग दरबारी’ के व्यंग्य आज के समय में भी उतने ही खरे और चोट करने वाले हैं. ऑडियोबुक के रूप में यह क़िताब हमारे चेहरे पर हँसी बिखेरती है, और साथ ही ज़ेहन में यह सवाल भी पैदा करती है कि इतने सालों में हमारे देश की प्रगति को वो रफ़्तार क्यों नहीं मिली, जिसके हम हक़दार हैं? अपनी किताब ‘राग दरबारी’ के लिए पहचाने जानेवाले शुक्ल जी ने कुल 25 किताबें लिखीं. उनकी पहली किताब ‘अंगद का पांव’ भी चर्चित हुई थी. मगर ‘राग दरबारी’ के साथ जो मुकाम शुक्ल जी ने पाया वो साहित्य में कम ही लोगों को मिला है. Satirical and deeply humane insight into the life of rural India.
© 2017 Storyside IN (Audiobook): 9788193361894
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