धर्मबुद्धि और पापबुद्धि
किसी गाँव में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्र रहते थे। एक दिन पापबुद्धि ने सोचा कि मैं तो मूर्ख हूँ, इसीलिए गरीब हूँ। क्यों न धर्मबुद्धि के साथ मिलकर विदेशों में जाकर व्यापार करूँ और फिर इसको ठगकर ढेर सारा धन कमा लूँ।
यह सोचकर एक दिन पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, “हम इस गाँव में अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं। क्यों न हम नगर में जाकर कुछ व्यापार करें?“ धर्मबुद्धि ने अपने मित्र की बात मान ली और उसके साथ नगर को चला गया।
दोनों ने कई दिनों तक नगर में रहकर व्यापार किया और अच्छा धन कमाया। एक दिन दोनों ने अपने गाँव वापस लौटने का मन बनाया। गाँव के समीप पहुँचने पर पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, “मित्र! इतना सारा धन एक साथ घर ले जाना उचित नहीं है। क्यों न हम थोड़ा सा धन निकालकर बाकी यहीं कहीं धरती में गाड़ दें। आगे जब भी आवश्यकता होगी हम यहाँ आकर निकाल लिया करेंगे।“ उसकी बात धर्मबुद्धि ने मान ली।
एक रात पापबुद्धि जंगल में गया और गड्ढे से सारा धन निकलकर ले आया।
दूसरे दिन पापबुद्धि धर्मबुद्धि के घर गया और बोला, “मित्र! मेरा परिवार बहुत बड़ा है। मुझे अपना घर चलाने के लिए अधिक धन की आवश्यकता है, इसलिए हम जंगल जाकर कुछ धन निकाल लाते हैं।“ दोनों साथ में जंगल चले गए।
जब दोनों ने मिलकर उस स्थान पर खोदा जहाँ धन गड़ा हुआ था तो धन का पात्र खाली पाया। तब पापबुद्धि अपना सर पीटता हुआ बोला, “धर्मबुद्धि! तुमने ही यह धन चुराया है। तुम्हारे अतिरिक्त किसी और को इस स्थान का पता नहीं था। अब जल्दी से मेरा आधा भाग मुझे दे दो अन्यथा मेरे साथ राजसभा चलो, वहीं इसका निर्णय होगा।“ Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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