Thriller
अपने अहंकार के कारण अगस्त्य ऋषि के शाप का भागी बने नहुष ने वर्षों पृथ्वी पर एक अजगर के रूप में व्यतीत किए। नहुष की कथा के इस भाग में हम देखेंगे अंततः कैसे हुआ नहुष का उद्धार।
एक समय इंद्र रह चुके नहुष का सर्प बनकर धरा लोक पर पतन हुए हजारों वर्ष बीत चुके थे। महर्षि अगस्त्य के श्राप के कारण इतने वर्षों के उपरांत भी नहुष को सब कुछ पूरी तरह से याद था। वह जानते थे कि वह चन्द्रवंशी सम्राट आयु के पुत्र तथा अपने अहंकार का ही शिकार बने एक अभागे मनुष्य हैं जिन्होंने अपने अहंकार के वशीभूत होकर इन्द्र के पद को पाकर भी खो दिया। हर समय अपने द्वारा की गयी भूल को याद करते हुए सर्प रूपी नहुष पश्चाताप करते व अपनी मुक्ति की प्रतीक्षा करते। हिमालय के तलहटी पर सरस्वती नदी के किनारे वन में एक विशाल सर्प के रूप में वास करने वाले नहुष जीव जंतु तथा अपने समीप आने वाले मनुष्यों का भक्षण कर अपनी क्षुधा का निवारण करते। ऐसे ही अपना जीवन व्यतीत करते नहुष अब द्वापर युग में पहुंच चुके थे। वनवास काल के समय पांडव विचरण करते हुए इसी वन में आये जहाँ नहुष का वास था। एक बार अपने लिए खाना ढूंढ़ते ढूंढ़ते भीम गलती से नहुष के पास पहुंच जाते हैं। बहुत दिनों से भूखे नहुष ने अब भीम को देख कर उन्हें अपना भोजन बनाने का निश्चय किया। सर्प रूपी नहुष की विशाल काया से अचंभित भीम भी एक क्षण के लिए इतने बड़े सांप को देख कर तटस्थ हो गए थे। अब नहुष आगे बढे और अपनी जीभ लहलहाते हुए भीम की ओर अग्रसर हुए। हर समय अपने बल को लेकर अहंकार करने वाले भीम को आज कोई सर्प अपनी कुंडली में जकड़ रहा था और बहुत कोशिशें करने के बाद भी महाबली भीम असहाय थे। भीम बस नहुष का भोजन बनने ही वाले थे कि वहां पर धर्मराज युधिष्ठिर का आगमन होता है। चूंकि बहुत देर से भीम वापस नहीं आये थे तो उन्हें खोजते खोजते युधिष्ठिर वहां पहुंच जाते हैं। अपने महा बलशाली भ्राता को एक सांप के चंगुल में इस तरह असहाय फंसा हुआ देख युधिष्ठिर समझ जाते हैं कि यह कोई साधारण सर्प नहीं हो सकता। “हे सर्प, मैं युधिष्ठिर हूँ। तुमने जिसे अपना भोजन बनाने का निश्चय किया है,वह मेरा अनुज है। कृपा करके तुम उसे जाने दो, मैं तुम्हे इसके बदले कोई और उत्कृष्ट भोजन देने का वचन देता हूँ।” भीम को बचाने के लिए युधिष्ठिर ने सर्प से कहा।”“हे कुंती पुत्र, मैं भली भांति जानता हूँ तुम कौन हो. और तुम्हारे अनुज को भी जानता हूँ। लेकिन मैं भूख की ज्वाला से विवश हूँ, भीम जैसे हट्टे कट्टे मनुष्य का भोजन कर मैं कई दिनों तक क्षुधा की ज्वाला से स्वयं की रक्षा कर सकता हूँ। तुम वापस लौट जाओ, मेरा भीम को खाना निश्चित हैं।” भूख से तिलमिलाते नहुष ने उत्तर दिया।
Tanggal rilis
Buku audio : 12 Oktober 2022
Thriller
अपने अहंकार के कारण अगस्त्य ऋषि के शाप का भागी बने नहुष ने वर्षों पृथ्वी पर एक अजगर के रूप में व्यतीत किए। नहुष की कथा के इस भाग में हम देखेंगे अंततः कैसे हुआ नहुष का उद्धार।
एक समय इंद्र रह चुके नहुष का सर्प बनकर धरा लोक पर पतन हुए हजारों वर्ष बीत चुके थे। महर्षि अगस्त्य के श्राप के कारण इतने वर्षों के उपरांत भी नहुष को सब कुछ पूरी तरह से याद था। वह जानते थे कि वह चन्द्रवंशी सम्राट आयु के पुत्र तथा अपने अहंकार का ही शिकार बने एक अभागे मनुष्य हैं जिन्होंने अपने अहंकार के वशीभूत होकर इन्द्र के पद को पाकर भी खो दिया। हर समय अपने द्वारा की गयी भूल को याद करते हुए सर्प रूपी नहुष पश्चाताप करते व अपनी मुक्ति की प्रतीक्षा करते। हिमालय के तलहटी पर सरस्वती नदी के किनारे वन में एक विशाल सर्प के रूप में वास करने वाले नहुष जीव जंतु तथा अपने समीप आने वाले मनुष्यों का भक्षण कर अपनी क्षुधा का निवारण करते। ऐसे ही अपना जीवन व्यतीत करते नहुष अब द्वापर युग में पहुंच चुके थे। वनवास काल के समय पांडव विचरण करते हुए इसी वन में आये जहाँ नहुष का वास था। एक बार अपने लिए खाना ढूंढ़ते ढूंढ़ते भीम गलती से नहुष के पास पहुंच जाते हैं। बहुत दिनों से भूखे नहुष ने अब भीम को देख कर उन्हें अपना भोजन बनाने का निश्चय किया। सर्प रूपी नहुष की विशाल काया से अचंभित भीम भी एक क्षण के लिए इतने बड़े सांप को देख कर तटस्थ हो गए थे। अब नहुष आगे बढे और अपनी जीभ लहलहाते हुए भीम की ओर अग्रसर हुए। हर समय अपने बल को लेकर अहंकार करने वाले भीम को आज कोई सर्प अपनी कुंडली में जकड़ रहा था और बहुत कोशिशें करने के बाद भी महाबली भीम असहाय थे। भीम बस नहुष का भोजन बनने ही वाले थे कि वहां पर धर्मराज युधिष्ठिर का आगमन होता है। चूंकि बहुत देर से भीम वापस नहीं आये थे तो उन्हें खोजते खोजते युधिष्ठिर वहां पहुंच जाते हैं। अपने महा बलशाली भ्राता को एक सांप के चंगुल में इस तरह असहाय फंसा हुआ देख युधिष्ठिर समझ जाते हैं कि यह कोई साधारण सर्प नहीं हो सकता। “हे सर्प, मैं युधिष्ठिर हूँ। तुमने जिसे अपना भोजन बनाने का निश्चय किया है,वह मेरा अनुज है। कृपा करके तुम उसे जाने दो, मैं तुम्हे इसके बदले कोई और उत्कृष्ट भोजन देने का वचन देता हूँ।” भीम को बचाने के लिए युधिष्ठिर ने सर्प से कहा।”“हे कुंती पुत्र, मैं भली भांति जानता हूँ तुम कौन हो. और तुम्हारे अनुज को भी जानता हूँ। लेकिन मैं भूख की ज्वाला से विवश हूँ, भीम जैसे हट्टे कट्टे मनुष्य का भोजन कर मैं कई दिनों तक क्षुधा की ज्वाला से स्वयं की रक्षा कर सकता हूँ। तुम वापस लौट जाओ, मेरा भीम को खाना निश्चित हैं।” भूख से तिलमिलाते नहुष ने उत्तर दिया।
Tanggal rilis
Buku audio : 12 Oktober 2022
Masuki dunia cerita tanpa batas
Belum ada ulasan
Unduh aplikasinya untuk bergabung dalam percakapan dan menambahkan ulasan.
Bahasa Indonesia
Indonesia