ब्रह्मदेव के मानस पुत्र भृगु ऋषि के पुत्र च्यवन ऋषि की कथा अत्यंत रोचक है। उनकी गर्भवती माता का अपहरण करने वाला राक्षस उनके जन्म लेते ही उनके तेज से भस्म हो गया। सदा हरिभक्ति में लीन रहने वाले ऋषि च्यवन का विवाह एक राजकुमारी से हुआ और उनके पतिव्रत के कारण ऋषि को सुंदर काया प्राप्त हुई। देवताओं के चिकित्सक और सूर्यदेव के पुत्रों अश्विनी कुमारों को देवराज इन्द्र के विरोध के बाद भी देवत्व प्रदान करने वाले भी ऋषि च्यवन ही थे। सूत्रधार की इस प्रस्तुति में हम देखेंगे भार्गव च्यवन के जीवन की कथा।
ब्रह्मदेव के मानस पुत्र ब्रह्मर्षि भृगु अपनी गर्भवती पत्नी पुलोमा को अग्निदेव के संरक्षण में छोड़कर तपस्या करने गए हुए थे। उसी समय पुलोमन नामक एक राक्षस ने आश्रम से पुलोमा का अपहरण कर लिया। जब वह राक्षस पुलोमा को बल पूर्वक अपने साथ ले जा रहा था, उसी समय देवी पुलोमा का गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ। वह बालक इतना तेजस्वी था कि उनके जन्म लेते ही, उनके तेज से राक्षस पुलोमन वहीं भस्म हो गया। इस प्रकार जन्म के समय माता के गर्भ से गिरने के कारण उस बालक का नाम च्यवन हुआ।
जन्म से ही तेजस्वी च्यवन ऋषि अपना सारा समय तप में व्यतीत करते थे। एक बार वर्षों तक तप में लीन होने के कारण उनके ऊपर चींटियों ने बाँबी बना ली थी। उस बाँबी ने ऋषि का सारा शरीर ढक दिया था।
एक दिन महाराज शर्याति अपने परिवार और सैन्यबल के साथ वन में विहार करने गए हुए थे। राजकुमारी सुकन्या अपनी सखियों के साथ च्यवन ऋषि के आश्रम में क्रीड़ा कर रही थीं, कि उनकी दृष्टि उस विशाल बाँबी पर पड़ी। पास जाकर देखने पर उनको उसके अंदर से दो चमकते हुए रत्न दिखाई दिए। राजकुमारी ने कौतूहलवश एक नुकीली सींक से उन रत्नों को कुरेदने का प्रयास किया। उनके ऐसा करने पर उनसे रक्त की धारा बहने लगी। वो रत्न ऋषि च्यवन के दो नेत्र थे, जिन्हें राजकुमारी ने अपने कौतूहल वश फोड़ दिया था। बाँबी से रक्त की धार बहते देखकर राजकुमारी और उनकी सखियाँ घबराकर वहाँ से भागकर अपने पिता के पास चली गयीं। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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