ये कहानी है 24 साल के एक लड़के की, जो बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से जान बचाकर भारत आया था. सबकुछ बिखर जाने के बाद जिसने शून्य से शुरुआत की. और फीनिक्स की तरह राख से उबरकर दिखाया. उसका सफर मुश्किलों भरा था. उसने अपने परिवार का पेट भरने के लिए तांगा तक चलाया. दो-दो पैसों में मेहंदी की पुड़िया बेचीं. लेकिन अपनी मेहनत के बल पर उसने न सिर्फ खोया हुआ सबकुछ वापस हासिल कर लिया, बल्कि उसमें इज़ाफा ही किया. इतना ज़्यादा कि उसकी शक्ल घर-घर पहचानी गई. उसके चेहरे से हिन्दुस्तान का बच्चा-बच्चा वाकिफ हो गया. सिर्फ शक्ल ही नहीं, उसके चलाए ब्रांड ने भी अपार प्रसिद्धि हासिल की. आज भारतवर्ष में शायद ही कोई होगा, जिसने MDH का नाम नहीं सुना होगा. सुनिए MDH और उसके जनक महाशय धरमपाल गुलाटी की अद्भुत कहानी…
วันที่วางจำหน่าย
หนังสือเสียง : 12 พฤศจิกายน 2564
ये कहानी है 24 साल के एक लड़के की, जो बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से जान बचाकर भारत आया था. सबकुछ बिखर जाने के बाद जिसने शून्य से शुरुआत की. और फीनिक्स की तरह राख से उबरकर दिखाया. उसका सफर मुश्किलों भरा था. उसने अपने परिवार का पेट भरने के लिए तांगा तक चलाया. दो-दो पैसों में मेहंदी की पुड़िया बेचीं. लेकिन अपनी मेहनत के बल पर उसने न सिर्फ खोया हुआ सबकुछ वापस हासिल कर लिया, बल्कि उसमें इज़ाफा ही किया. इतना ज़्यादा कि उसकी शक्ल घर-घर पहचानी गई. उसके चेहरे से हिन्दुस्तान का बच्चा-बच्चा वाकिफ हो गया. सिर्फ शक्ल ही नहीं, उसके चलाए ब्रांड ने भी अपार प्रसिद्धि हासिल की. आज भारतवर्ष में शायद ही कोई होगा, जिसने MDH का नाम नहीं सुना होगा. सुनिए MDH और उसके जनक महाशय धरमपाल गुलाटी की अद्भुत कहानी…
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