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"परशुराम की कथा — क्षत्रियों के काल की गाथा" केवल एक पौराणिक चरित्र की कथा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे युग की गाथा है जहाँ धर्म, मर्यादा, कर्तव्य और शक्ति एक-दूसरे से टकरा रहे थे। यह कथा है उस ब्राह्मण योद्धा की जिसने अन्याय और अहंकार के विरुद्ध परशु उठाया, जिसने न केवल तप किया, बल्कि उस तप की अग्नि से क्षत्रिय कुलों को जलाया और अपने समय के विकृत संतुलन को पुनः धर्म की स्थापना से सन्तुलित किया।
इस पुस्तक में परशुराम के जन्म से लेकर उनके वनवास और अमरत्व तक की यात्रा को सरल, लंबे और स्पष्ट वाक्यों में प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह कथा न केवल रोचक बनती है बल्कि आज के पाठक के लिए सहज और प्रभावशाली भी बनती है। यह पुस्तक उन सभी के लिए है जो भारतीय महागाथाओं को ताजगी और स्पष्टता के साथ पढ़ना चाहते हैं, जो यह समझना चाहते हैं कि जब समाज अपने नैतिक मूल्य खो बैठता है, तब एक ब्राह्मण भी योद्धा बन जाता है।
यह गाथा नायक की नहीं, समय की पुकार की है। यह पुस्तक इतिहास नहीं, चेतावनी है — कि जब धर्म डगमगाने लगे, तब किसी भी युग में एक परशुराम जन्म ले सकता है।
© 2025 Dharamraj Yadav (หนังสือเสียง): 9798318451751
วันเปิดตัว
หนังสือเสียง: 21 กรกฎาคม 2568
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