टिटिहरी और अहंकारी समुद्र

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      11
  • Published
      11 ส.ค. 2565
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Episode
11 of 25
ระยะเวลา
7นาที
ภาษา
ภาษาฮินดู
รูปแบบ
หมวดหมู่
หนังสือเด็ก

किसी समुद्र के तट में एक टिटिहरी पक्षियों का एक जोड़ा रहता था। जब मादा टिटिहरी के अंडे देने का समय आया तो उसने नर टिटिहरी से कहा कि जल्दी से कोई शान्त जगह ढूँढे, जहाँ वह अंडे दे सके। नर टिटिहरी ने कहा, “यह समुद्र तट कितना सुंदर है, तुम यहीं अंडे दे दो।“ मादा बोली, “पूर्णिमा के दिन जो ज्वार आता है वो बड़े-बड़े हाथियों तक तो अपने साथ बहा ले जाता है। तुम जल्दी से कोई दूसरा स्थान खोजो।“ इस पर नर बोला, “बात तो तुम्हारी सत्य है पर इस समुद्र में ऐसा सामर्थ्य कहाँ जो मेरे बच्चों का कुछ बिगाड़ सके। तुम निश्चिंत होकर यहीं अंडे दो।“

उधर समुद्र ने टिटिहरी की बातें सुनकर सोचा, “कितना कल्पित गर्व है इस पक्षी में कि रात में आकाश को सम्हालने के लिए पैर ऊपर करके सोता है। जरा देखें तो इसकी ताकत।“ ऐसा सोचकर समुद्र स्थिर हो गया और टिटिहरी ने समुद्र के किनारे अंडे दे दिए। अगले ही दिन जब टिटिहरी भोजन की खोज में गए हुए थे, समुद्र में ज्वार आया और वो टिटिहरी के अंडे बहाकर ले गया। जब दोनों पक्षी वापस आए तो अपने अंडे न देखकर मादा टिटिहरी क्रोध में बोली, “अरे मूर्ख! मैंने तुझसे कहा था की समुद्र के ज्वार में मेरे अंडे नष्ट हो जाएंगे इसीलिए कहीं दूर चलकर शान्त जगह में अंडे देते हैं, पर तूने अपनी बेवकूफी और अहंकार के कारण मेरी बात नहीं मानी।“

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