सिंहासन बत्तीसी: सत्रहवीं पुतली विद्यावती : Vidyavati

सिंहासन बत्तीसी: सत्रहवीं पुतली विद्यावती : Vidyavati

0 การให้คะแนน
0
Episode
18 of 32
ระยะเวลา
3นาที
ภาษา
ภาษาฮินดู
รูปแบบ
หมวดหมู่
พัฒนาตนเอง

विद्यावती विद्यावती नामक सत्रहवीं पुतली ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- महाराजा विक्रमादित्य की प्रजा को कोई कमी नहीं थीं। सभी लोग संतुष्ट तथा प्रसन्न रहते थे। कभी कोई समस्या लेकर यदि कोई दरबार आता था उसकी समस्या को तत्काल हल कर दिया जाता था। प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट देने वाले अधिकारी को दण्डित किया जाता था। इसलिए कहीं से भी किसी तरह की शिकायत नहीं सुनने को मिलती थी। राजा खुद भी वेश बदलकर समय-समय पर राज्य की स्थिति के बारे में जानने को निकलते थे। ऐसे ही एक रात जब वे वेश बदलकर अपने राज्य का भ्रमण कर रहे थे तो उन्हें एक झोंपड़े से एक बातचीत का अंश सुनाई पड़ा। कोई औरत अपने पति को राजा से साफ़-साफ़ कुछ बताने को कह रही थी और उसका पति उसे कह रहा था कि अपने स्वार्थ के लिए अपने महान राजा के प्राण वह संकट में नहीं डाल सकता है।

विक्रम समझ गए कि उनकी समस्या से उनका कुछ सम्बन्ध है। उनसे रहा नहीं गाया। अपनी प्रजा की हर समस्या को हल करना वे अपना कर्त्तव्य समझते थे। उन्होंने द्वार खटखटाया, तो एक ब्राह्मण दम्पत्ति ने दरवाजा खोला। विक्रम ने अपना परिचय देकर उनसे उनकी समस्या के बारे में पूछा तो वे थर-थर काँपने लगे। जब उन्होंने निर्भय होकर उन्हें सब कुछ स्पष्ट बताने को कहा तो ब्राह्मण ने उन्हें सारी बात बता दी। ब्राह्मण दम्पत्ति विवाह के बारह साल बाद भी निस्संतान थे।

इन बारह सालों में संतान के लिए उन्होंने काफ़ी यत्न किए। व्रत-उपवास, धर्म-कर्म, पूजा-पाठ हर तरह की चेष्टा की पर कोई फायदा नहीं हुआ। ब्राह्मणी ने एक सपना देखा है। स्वप्न में एक देवी ने आकर उसे बताया कि तीस कोस की दूरी पर पूर्व दिशा में एक घना जंगल है जहाँ कुछ साधु सन्यासी शिव की स्तुति कर रहे हैं। शिव को प्रसन्न करने के लिए हवन कुण्ड में अपने अंग काटकर डाल रहे हैं। अगर उन्हीं की तरह राजा विक्रमादित्य उस हवन कुण्ड में अपने अंग काटकर फेंकें, तो शिव प्रसन्न होकर उनसे उनकी इच्छित चीज़ माँगने को कहेंगे। वे शिव से ब्राह्मण दम्पत्ति के लिए संतान की माँग कर सकते हैं और उन्हें सन्तान प्राप्ति हो जाएगी।

विक्रम ने यह सुनकर उन्हें आश्वासन दिया कि वे यह कार्य अवश्य करेंगे। रास्त में उन्होंने बेतालों को स्मरण कर बुलाया तथा उस हवन स्थल तक पहुँचा देने को कहा। उस स्थान पर सचमुच साधु-सन्यासी हवन कर रहे थे तथा अपने अंगों को काटकर अग्नि-कुण्ड में फेंक रहे थे। विक्रम भी एक तरफ बैठ गए और उन्हीं की तरह अपने अंग काटकर अग्नि को अर्पित करने लगे। जब विक्रम सहित वे सारे जलकर राख हो गए तो एक शिवगण वहाँ पहुँचा तथा उसने सारे तपस्विओं को अमृत डालकर ज़िन्दा कर दिया, मगर भूल से विक्रम को छोड़ दिया।

सारे तपस्वी ज़िन्दा हुए तो उन्होंने राख हुए विक्रम को देखा। सभी तपस्विओं ने मिलकर शिव की स्तुति की तथा उनसे विक्रम को जीवित करने की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने तपस्विओं की प्रार्थना सुन ली तथा अमृत डालकर विक्रम को जीवित कर दिया । विक्रम ने जीवित होते ही शिव के सामने नतमस्तक होकर ब्राह्मण दम्पत्ति को संतान सुख देने के लिए प्रार्थना की। शिव उनकी परोपकार तथा त्याग की भावना से काफ़ी प्रसन्न हुए तथा उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ दिनों बाद सचमुच ब्राह्मण दम्पत्ति को पुत्र लाभ हुआ।


ฟังและอ่าน

ก้าวเข้าสู่โลกแห่งเรื่องราวอันไม่มีที่สิ้นสุด

  • อ่านและฟังได้มากเท่าที่คุณต้องการ
  • มากกว่า 1 ล้านชื่อ
  • Storytel Originals ผลงานเฉพาะบน Storytel
  • 199บ./ด.
  • ยกเลิกได้ทุกเมื่อ
เริ่ม
Details page - Device banner - 894x1036
Cover for सिंहासन बत्तीसी: सत्रहवीं पुतली विद्यावती : Vidyavati

พอดแคสต์อื่น ๆ ที่คุณอาจชอบ ...