किसी भी अन्य विधा की तरह ही अनुवाद भी कागजों, किसी एक जगह या व्यक्ति तक सीमित रहने वाली प्रक्रिया नहीं है. यह एक लाइफ लॉन्ग जर्नी है, जिसके हर कदम पर आप कुछ न कुछ सीखते हुए आगे बढ़ते हैं. अनुवाद के विषय में हमारी आज की मेहमान का मानना है कि जब एक लेखक के लिए उसकी कृति बच्चे के समान होती है, तो वहीं अनुवादक के लिए भी वो उसका सेरोगेट चाइल्ड है. किताब का मूल भले ही अनुवादक का नहीं होता, लेकिन उस मूल को अपने परिवेश में लाने तक का सफर अनुवादक भी एक अभिभावक की तरह ही पूरा करता है, फिर वो चाहे एक सेरोगेट अभिभावक ही क्यों न हो. हमारी होस्ट मोहिनी गुप्ता,आज के इस पोडकास्ट में उर्मिला गुप्ता से अनुवाद और लाइफ के पेचीदा बैलेंस पर बात कर रही हैं. उर्मिला गुप्ता,पेशे से अनुवादक, संपादक,ब्लॉगर, स्क्रिप्ट राइटर हैं तोदिल से पूरी तरह फ़िल्मी . पिछले बारह सालों से किताबों की दुनिया में काम करते हुए 20से ज्यादा किताबों का अनुवाद किया, जिनमें कई बेस्टसेलर किताबें शामिल हैं. आपने यात्रा बुक्स, राजकमल प्रकाशन जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में संपादन और अनुवाद कार्य किया. इसके अलावा टीमवर्क, स्कोलास्टिक, हार्पर कॉलिन्स,जगरनॉट, वेस्टलैंड और पेंगुइन के साथ स्वतन्त्र रूप से काम किया है। भारतीय अनुवाद परिषद् से आपको 'द्विवागीश पुरस्कार'प्राप्त हुआ है. आप हमारे साथ ज़रूर साझा करें कि आपको 'बोलती किताबें'कैसा लग रहा है और आप इसमें क्या सुनना पसंद करेंगे? email: support@storytel.in (mailto:support@storytel.in) स्टोरीटेल सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ (https://www.storytel.com/hindi) जाएँ.
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