रवींद्र नाथ टैगोर की कहानियाँ : अपरिचिता, Aparichita

रवींद्र नाथ टैगोर की कहानियाँ : अपरिचिता, Aparichita

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Episode
8 of 21
ระยะเวลา
36นาที
ภาษา
ภาษาฮินดู
รูปแบบ
หมวดหมู่
นิยาย

विवाह की उम्र होने पर अपने भावी जीवन साथी के लिए मन में कल्पना होना हमेशा से लड़के और लड़की होता रहा है। पर पहले के ज़माने में बिना कन्या को देखे-मिले बुज़ुर्गों के आदेश पर विवाह हुआ करते थे। दान-दहेज के मामले भी बुज़ुर्ग अपने हिसाब से देखते थे। लेकिन क्या हमेशा वर पक्ष वाले ही सही होते हैं....क्या कन्या पक्ष वालों को कुछ बोलने का अधिकार नहीं हो सकता...उनकी नियति में सिर्फ सिर झुकाकर वर पक्ष की बातों को मानना ही होता है.....गुरुदेव ने अपने ज़माने की परिस्थितियों के अनुसार "अपरिचिता" कहानी लिखी थी, जो आज भी समसामायिक है। नायक के लिए कन्या अपरिचिता थी...क्या वो कभी परिचिता बन पायी....सुनें कहानी.....


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