सिंहासन बत्तीसी: इक्कीसवीं पुतली चंद्र्ज्योति : Chandrjyoti

0 Peringkat
0
Episode
22 of 32
Durasi
6menit
Bahasa
Hindi
Format
Kategori
Pengembangan Diri

चन्द्रज्योति चन्द्रज्योति नामक इक्कीसवीं पुतली की कथा इस प्रकार है- एक बार विक्रमादित्य एक यज्ञ करने की तैयारी कर रहे थे। वे उस यज्ञ में चन्द्र देव को आमन्त्रित करना चाहते थे। चन्द्रदेव को आमन्त्रण देने कौन जाए- इस पर विचार करने लगे। काफी सोच विचार के बाद उन्हें लगा कि महामंत्री ही इस कार्य के लिए सर्वोत्तम रहेंगे। उन्होंने महामंत्री को बुलाकर उनसे विमर्श करना शुरु किया। तभी महामंत्री के घर का एक नौकर वहाँ आकर खड़ा हो गया। महामंत्री ने उसे देखा तो समझ गए कि अवश्य कोई बहुत ही गंभीर बात है अन्यथा वह नौकर उसके पास नहीं आता। उन्होंने राजा से क्षमा मांगी और नौकर से अलग जाकर कुछ पूछा। जब नौकर ने कुछ बताया तो उनका चेहरा उतर गया और वे राजा से विदा लेकर वहाँ से चले गए।

महामंत्री के अचानक दुखी और चिन्तित होकर चले जाने पर राजा को लगा कि अवश्य ही महामंत्री को कोई कष्ट है। उन्होंने नौकर से उनके इस तरह जाने का कारण पूछा तो नौकर हिचकिचाया। जब राजा ने आदेश दिया तो वह हाथ जोड़कर बोला कि महामंत्री जी ने मुझे आपसे सच्चाई नहीं बताने को कहा था। उन्होंने कहा था कि सच्चाई जानने के बाद राजा का ध्यान बँट जाएगा और जो यज्ञ होने वाला है उसमें व्यवधान होगा। राजा ने कहा कि महामंत्री उनके बड़े ही स्वामिभक्त सेवक हैं और उनका भी कर्त्तव्य है कि उनके कष्ट का हर संभव निवारण करें।

तब नौकर ने बताया कि महामंत्री जी की एकमात्र पुत्री बहुत लम्बे समय से बीमार है। उन्होंने उसकी बीमारी एक से बढ़कर एक वैद्य को दिखाई, पर कोई भी चिकित्सा कारगर नहीं साबित हुई। दुनिया की हर औषधि उसे दी गई, पर उसकी हालत बिगड़ती ही चली गई। अब उसकी हालत इतनी खराब हो चुकी है कि वह हिल-डुल नहीं सकती और मरणासन्न हो गई है।

विक्रमादित्य ने जब यह सुना तो व्याकुल हो गए। उन्होंने राजवैद्य को बुलवाया और जानना चाहा कि उसने महामंत्री की पुत्री की चिकित्सा की है या नही। राजवैद्य ने कहा कि उसकी चिकित्सा केवल ख्वांग बूटी से की जा सकती है। दुनिया की अन्य कोई औषधि कारगर नहीं हो सकती। ख्वांग बूटी एक बहुत ही दुर्लभ औषधि है जिसे ढूँढ़कर लाने में कई महीने लग जाएँगे।

राजा विक्रमादित्य ने यह सुनकर कहा- "तुम्हें उस स्थान का पता है जहाँ यह बूटी मिलती है?" राज वैद्य ने बताया कि वह बूटी नीलरत्नगिरि की घाटियों में पाई जाती है लेकिन उस तक पहुँचना बहुत ही कठिन है। रास्ते में भयंकर सपं, बिच्छू तथा हिंसक जानवर भरे बड़े हैं। राजा ने यह सुनकर उससे उस बूटी की पहचान बताने को कहा। राज वैद्य ने बताया कि वह पौधा आधा नीला आधा पीला फूल लिए होता है तथा उसकी पत्तियाँ लाजवन्ती के पत्तों की तरह स्पर्श से सकुचा जाती हैं।

विक्रम यज्ञ की बात भूलकर ख्वांग बूटी की खोज में जाने का निर्णय कर बैठे। उन्होंने तुरन्त काली के दिए गए दोनों बेतालों का स्मरण किया। बेताल उन्हें आनन-फानन में नीलरत्नगिरि की ओर ले चले। पहाड़ी पर उन्हें उतारकर बेताल अदृश्य हो गए। राजा घाटियों की ओर बढ़ने लगे। घाटियों में एकदम अंधेरा था। चारों ओर घने जंगल थे। राजा बढ़ते ही रहे। एकाएक उनके कानों में सिंह की दहाड़ पड़ी। वे सम्भल पाते इसके पहले ही सिंह ने उन पर आक्रमण कर दिया।

राजा ने बिजली जैसी फुर्ती दिखाकर खुद को तो बचा लिया, मगर सिंह उनकी एक बाँह को घायल करने में कामयाब हो गया। सिंह दुबारा जब उन पर झपटा तो उन्होंने भरपूर प्रहार से उसके प्राण ले लिए। उसे मारकर जब वे आगे बढ़े तो रास्ते पर सैकड़ों विषधर दिखे। विक्रम तनिक भी नहीं घबराए और उन्होंने पत्थरों की वर्षा करके साँपों को रास्ते से हटा दिया। उसके बाद वे आगे की ओर बढ़ चले। रास्ते में एक जगह इन्हें लगा कि वे हवा में तैर रहे है। ध्यान से देखने पर उन्हें एक दैत्याकार अजगर दिखा। वे समझ गए कि अजगर उन्हें अपना ग्रास बना रहा है। ज्योंहि वे अजगर के पेट में पहुँचे कि उन्होंने अपनी तलवार से अजगर का पेट चीर दिया और बाहर आ गए। तब तक गर्मी और थकान से उनका बुरा हाल हो गया। अंधेरा भी घिर आया था। उन्होंने एक वृक्ष पर चढ़कर विश्राम किया। ज्योंहि सुबह हुई वे ख्वांग बूटी की खोज में इधर-उधर घूमने लगे। उसकी खोज में इधर-उधर भटकते न जाने कब शाम हो गई और अंधेरा छा गया।

अधीर होकर उन्होंने कहा- "काश, चन्द्रदेव मदद करते!" इतना कहना था कि मानों चमत्कार हो गया। घाटियों में दूध जैसी चाँदनी फैल गई। अन्धकार न जाने कहाँ गायब हो गया। सारी चीज़े ऐसी साफ दिखने लगीं मानो दिन का उजाला हो। थोड़ी दूर बढ़ने पर ही उन्हें ऐसे पौधे की झाड़ी नज़र आई जिस पर आधे नीले आधे पीले फूल लगे थे। उन्होंने पत्तियाँ छूई तो लाजवंती की तरह सकुचा गई। उन्हें संशय नहीं रहा। उन्होंने ख्वांग बूटी का बड़ा-सा हिस्सा काट लिया। वे बूटी लेकर चलने ही वाले थे कि दिन जैसा उजाला हुआ और चन्द्र देव सशरीर उनके सम्मुख आ खड़े हुए। विक्रम ने बड़ी श्रद्धा से उनको प्रणाम किया। चन्द्रदेव ने उन्हें अमृत देते हुए कहा कि अब सिर्फ अमृत ही महामंत्री की पुत्री को जिला सकता है।

उनकी परोपकार की भावना से प्रभावित होकर वे खुद अमृत लेकर उपस्थित हुए हैं। उन्होंने जाते-जाते विक्रम को समझाया कि उनके सशरीर यज्ञ में उपस्थित होने से विश्व के अन्य भागों में अंधकार फैल जाएगा, इसलिए वे उनसे अपने यज्ञ में उपस्थित होने की प्रार्थना नहीं करें। उन्होंने विक्रम को यज्ञ अच्छी तरह सम्पन्न कराने का आशीर्वाद दिया और अन्तध्र्यान हो गए। विक्रम ख्वांग बूटी और अमृत लेकर उज्जैन आए। उन्होंने अमृत की बून्दें टपकाकर महामंत्री की बेटी को जीवित किया तथा ख्वांग बूटी जनहीत के लिए रख लिया। चारों ओर उनकी जय-जयकार होने लगी।


Dengarkan dan baca

Masuki dunia cerita tanpa batas

  • Baca dan dengarkan sebanyak yang Anda mau
  • Lebih dari 1 juta judul
  • Judul eksklusif + Storytel Original
  • Uji coba gratis 14 hari, lalu €9,99/bulan
  • Mudah untuk membatalkan kapan saja
Coba gratis
Details page - Device banner - 894x1036

Podcast lain yang mungkin Anda sukai ...