नील कन्दर से वापस लौटे अब कई दिन बीत चुके थे। सबर नगरी में विश्वावसू और अवंति में राजा इन्द्रद्युम्न अपने आराध्य के पुनः दर्शन पाने हेतु व्याकुल हो रहे थे। एक रात सोते समय इन्द्रद्युम्न के सपने में भगवान नीलमाधव आते हैं। पहली बार अपने भगवान की नीलवर्णी प्रतिमा तथा अलौकिक तेज को देखकर राजा भी भक्ति भाव से सराबोर हो उठते हैं।
नीलमाधव अब राजा को सही समय आने की सूचना देते हैं और कहते हैं कि, " हे मेरे परम भक्त इन्द्रद्युम्न, तुम पुनः उत्कल राज्य में जाओ। वहाँ तुन्हें समुद्र के किनारे पानी में तैरता हुआ लकड़ी का एक लट्ठा मिलेगा। उस लट्ठे से तुम मेरी, भैया बलराम तथा बहन सुभद्रा की त्रिमूर्तियों का निर्माण करोगे और उसी समुद्र के किनारे एक भव्य मंदिर बनवाकर विधि पूर्वक उसकी प्रतिष्ठा करोगे। कलियुग के अंत तथा कल्कि अवतार होने तक यही नील समुद्र का किनारा, नीलांचल ही मेरा स्थान होगा। यह कार्य तुम्हे, मेरे आद्य सेवक विश्वावसु को अपने साथ लेकर संपादित करना होगा।" Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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