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राजा को सदा ही उद्योगशील अर्थात् कर्मठ होना चाहिये। जो राजा उद्योग को छोड़कर बेकार बैठा रहता है उसकी प्रशंसा नहीं होती। इस विषय में शुक्राचार्य ने यह श्लोक कहा है,
द्वाविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिव।
राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चा प्रवासिनम्।।
मतलब जैसे साँप बिल में रहने वाले चूहों को निगल जाता है, उसी प्रकार शत्रुओं से युद्ध न करने वाले राजा और विद्याध्ययन न करने वाले ब्राह्मण को पृथ्वी निगल जाती है। अर्थात् वे बिना कुछ कर्म किये ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
जो सन्धि के योग्य हो उससे सन्धि और जो विरोध करने योग्य हो उसका डटकर विरोध करना चाहिये। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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