ก้าวเข้าสู่โลกแห่งเรื่องราวอันไม่มีที่สิ้นสุด
4.7
दुष्यन्त सिर्फ़ अपने होने में मुकम्मल बयान है। और उसके माथे पर चोट का गहरा निशान उसका जमाल है। ये गहरा निशान ख़ुद में सदियों पर फैली हुई इन्सानी दुःख दर्द की आहें समाए, अपनी ज़ात में रौशन है। ये गहरा निशान जब भी शाइरी में दाख़िल होता है तो ज़ुल्म सहते इन्सान के गले से अपने आप फूट पड़ता है। वो सूर्य का स्वागत भी करता है और एक कंठ विशपायी भी, वो साये में धूप भी चुनता है और आवाज़ों के घेरे में क़ैद होकर रोता भी है, आज़ादी की पुकार भी बनता है। वक़्त के थपेड़े सहते हुए इन्सान के अंदर का ज्वालामुखी फूटेगा तो लावा के रूप में ये अल्फ़ाज़ निकलेंगे ही, इनको सुनकर ज़ालिम के कानों पर जमी बर्फ़ पिघलेगी ही और सूरत बदलेगी ही।
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
Written by Abhinandan Pandey
วันที่วางจำหน่าย
หนังสือเสียง : 30 สิงหาคม 2564
แท็ก
กว่า 500 000 รายการ
Kids Mode (เนื้อหาที่ปลอดภัยสำหรับเด็ก)
ดาวน์โหลดหนังสือสำหรับการเข้าถึงแบบออฟไลน์
ยกเลิกได้ตลอดเวลา
ภาษาไทย
ประเทศไทย