‘महाभारत’ की कथा पर आधृत उपन्यास ‘महासमर’ का यह चौथा खण्ड है - ‘धर्म’! पाण्डवों को राज्य के रूप में खाण्डवप्रस्थ मिला है, जहाँ न कृषि है, न व्यापार। सम्पूर्ण क्षेत्र में अराजकता फैली हुई है। अपराधियों और महाशक्तियों की वाहिनियाँ अपने षड्यन्त्रों में लगी हुई हैं...और उनका कवच है खाण्डव-वन, जिसकी रक्षा स्वयं इन्द्र कर रहा है। युधिष्ठिर के सम्मुख धर्म-संकट है। वह नृशंस नहीं होना चाहता; किन्तु आनृशंसता से प्रजा की रक्षा नहीं हो सकती। पाण्डवों के पास इतने साधन भी नहीं हैं कि वे इन्द्र-रक्षित खाण्डव-वन को नष्ट कर, उसमें छिपे अपराधियों को दण्डित कर सकें। उधर अर्जुन के सम्मुख अपना धर्म-संकट है। उसे राज-धर्म का पालन करने के लिए अपनी प्रतिज्ञा भंग करनी पड़ती है और बारह वर्षों का ब्रह्मचर्य पूर्ण वनवास स्वीकार करना पड़ता है। किन्तु इन्हीं बारह वर्षों में अर्जुन ने उलूपी, चित्रांगदा और सुभद्रा से विवाह किये। न उसने ब्रह्मचर्य का पालन किया, न वह पूर्णतः वनवासी ही रहा। क्या उसने अपने धर्म का निर्वाह किया? धर्म को कृष्ण से अधिक और कौन जानता है? ...अर्जुन और कृष्ण ने अग्नि के साथ मिलकर, खाण्डव-वन को नष्ट कर डाला। क्या यह धर्म था? इस हिंसा की अनुमति युधिष्ठिर ने कैसे दे दी? और फिर राजसूय यज्ञ! क्या आवश्यकता थी, उस राजसूय यज्ञ की? जरासन्ध जैसा पराक्रमी राजा भीम के हाथों कैसे मारा गया; और उसका पुत्र क्यों खड़ा देखता रहा? अन्त में हस्तिनापुर में होने वाली द्यूत-सभा। धर्मराज होकर युधिष्ठिर ने द्यूत क्यों खेला? अपने भाइयों और पत्नी को द्यूत में हारकर किस धर्म का निर्वाह कर रहा था धर्मराज? द्रौपदी की रक्षा किसने की? कृष्ण उस सभा में किस रूप में उपस्थित थे? - ऐसे ही अनेक प्रश्नों के मध्य से होकर गुजरती है ‘धर्म’ की कथा। यह उपन्यास न केवल इन समस्याओं की गुत्थियाँ सुलझाता है बल्कि उस युग का, उस युग के चरित्रों का तथा उनके धर्म का विश्लेषण भी करता है। हम आश्वस्त हैं कि इस उपन्यास को पढ़कर ‘महाभारत’ ही नहीं, धर्म के प्रति भी आपका दृष्टिकोण कुछ अधिक विशद होकर रहेगा।...और फिर भी एक यह समकालीन मौलिक उपन्यास है, जिसमें आपके समसामयिक समाज की धड़कनें पूरी तरह से विद्यमान हैं।
Release date
Audiobook: 7 April 2021
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‘महाभारत’ की कथा पर आधृत उपन्यास ‘महासमर’ का यह चौथा खण्ड है - ‘धर्म’! पाण्डवों को राज्य के रूप में खाण्डवप्रस्थ मिला है, जहाँ न कृषि है, न व्यापार। सम्पूर्ण क्षेत्र में अराजकता फैली हुई है। अपराधियों और महाशक्तियों की वाहिनियाँ अपने षड्यन्त्रों में लगी हुई हैं...और उनका कवच है खाण्डव-वन, जिसकी रक्षा स्वयं इन्द्र कर रहा है। युधिष्ठिर के सम्मुख धर्म-संकट है। वह नृशंस नहीं होना चाहता; किन्तु आनृशंसता से प्रजा की रक्षा नहीं हो सकती। पाण्डवों के पास इतने साधन भी नहीं हैं कि वे इन्द्र-रक्षित खाण्डव-वन को नष्ट कर, उसमें छिपे अपराधियों को दण्डित कर सकें। उधर अर्जुन के सम्मुख अपना धर्म-संकट है। उसे राज-धर्म का पालन करने के लिए अपनी प्रतिज्ञा भंग करनी पड़ती है और बारह वर्षों का ब्रह्मचर्य पूर्ण वनवास स्वीकार करना पड़ता है। किन्तु इन्हीं बारह वर्षों में अर्जुन ने उलूपी, चित्रांगदा और सुभद्रा से विवाह किये। न उसने ब्रह्मचर्य का पालन किया, न वह पूर्णतः वनवासी ही रहा। क्या उसने अपने धर्म का निर्वाह किया? धर्म को कृष्ण से अधिक और कौन जानता है? ...अर्जुन और कृष्ण ने अग्नि के साथ मिलकर, खाण्डव-वन को नष्ट कर डाला। क्या यह धर्म था? इस हिंसा की अनुमति युधिष्ठिर ने कैसे दे दी? और फिर राजसूय यज्ञ! क्या आवश्यकता थी, उस राजसूय यज्ञ की? जरासन्ध जैसा पराक्रमी राजा भीम के हाथों कैसे मारा गया; और उसका पुत्र क्यों खड़ा देखता रहा? अन्त में हस्तिनापुर में होने वाली द्यूत-सभा। धर्मराज होकर युधिष्ठिर ने द्यूत क्यों खेला? अपने भाइयों और पत्नी को द्यूत में हारकर किस धर्म का निर्वाह कर रहा था धर्मराज? द्रौपदी की रक्षा किसने की? कृष्ण उस सभा में किस रूप में उपस्थित थे? - ऐसे ही अनेक प्रश्नों के मध्य से होकर गुजरती है ‘धर्म’ की कथा। यह उपन्यास न केवल इन समस्याओं की गुत्थियाँ सुलझाता है बल्कि उस युग का, उस युग के चरित्रों का तथा उनके धर्म का विश्लेषण भी करता है। हम आश्वस्त हैं कि इस उपन्यास को पढ़कर ‘महाभारत’ ही नहीं, धर्म के प्रति भी आपका दृष्टिकोण कुछ अधिक विशद होकर रहेगा।...और फिर भी एक यह समकालीन मौलिक उपन्यास है, जिसमें आपके समसामयिक समाज की धड़कनें पूरी तरह से विद्यमान हैं।
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Lokesh
10 Jul 2021
Shakti sir's voice has done justice to this epic.🙌 You can feel the emotion running through his voice.He is by far better narrator than others in this series.
Deepak
31 Aug 2021
its Mahabharat for youn generation.
Sharmishta
8 Nov 2021
Dr. Kohli’s Dharm in Mahasamar series is yet another masterpiece. It presents the intricacies that Yudhishtar, Krishna, Bhishma and many others had. It’s a remarkable narration and interpretation of that era and that society. It’s extremely thought provoking and I highly recommend to all.
Harsh
1 Feb 2022
Amazing, तारीफ के लिए पर्याप्त शब्द नहीं है। कृष्ण का देवत्व भले ही न दिखाया गया हो, लेकिन उनका व्यक्तित्व की तुलना ईश्वर से की गई है, अगर ईश्वर हैं तो श्री कृष्ण जैसे ही रहे होंगे।अच्छा लगा कि तटस्थ रूप में इस महागाथा का वर्णन किया गया है।।द्रौपति के साथ ऐसा ही हुआ होगा , श्री कृष्ण का नाम सुन कर दु:शासन के हाथ ही नहीं बढ़ पाए होंगे। और गांधारी के आ जाने के कारण ये आगे नहीं बढ़ा होगा।
Nitesh
6 Mar 2023
Dharam🙌🙌
Mayank
11 Apr 2021
बहुत सुंदर
Nidhi
18 Feb 2022
A must read book
Geeta
28 Nov 2022
Bahut achhi lagi.
क
23 Jan 2022
महा समर की शृंखला में शक्ति सिंह जी की वाणी में यह द्वितीय पुस्तक उतनी ही रोचक है जितनी इनके पूर्व की रचनायें थी। शक्ति जी ने हाव भाव के प्रयोग से पात्रों को जीवंत कर दिया है। किंतु २-३ त्रुटियाँ भी है। अनेको बार भीम को भीष्म एवं इसके विपरीत का स्थानापन्न किया गया है। एक अध्याय की समाप्ति और दूसरे के आरम्भ में लम्बे अंतराल है। इन सबसे श्रोता का ध्यान भंग होता है तथा कथा का प्रवाह क्षीण होता है। सम्पादक को इन वार्ताओं का ध्यान रखना चाहिए। किंतु इन लघु त्रुटियों के वर्तमान होने के बाद भी कथा तथा कथा वाचन, दोनो ही अद्भुत है एवं श्रोता को वशीभूत करने के प्रयास में सक्षम सिद्ध होते है। नरेंद्र कोहली जी तथा शक्ति सिंह जी को मेरा नमन।
Chandrakanta
4 Jun 2023
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