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Hindu : Jeene Ke Samriddh Kabaad

63 Ratings

3.6

Duration
29H 3min
Language
Hindi
Format
Category

Fiction

हिन्दू : जीने का समृद्ध कबाड़' 'हिन्दू' शब्द के असीम और निराकार विस्तार के भीतर समाहित, अपने-अपने ढंग से सामाजिक रुढियों में बदलती उखड़ी-पुखड़ी, जमी-बिखरी वैचारिक धुरियों, सामूहिक आदतों, स्वार्थो और परमार्थो की आपस में उलझी पड़ी अनेक बेड़ियों-रस्सियों, सामाजिक-कौतुबिंक रिश्तों की पुख्तगी और भंगुरता, शोषण और पोषण की एक दुसरे पर चढ़ीं अमृत और विष की बेलें, समाज की अश्मिभूत हायरार्की में साँस लेता-दम तोड़ता जन, और इस सबके उबड़-खाबड़ से रह मनाता समय-मरण-लिप्सा और जिवानावेग की अताल्गामी भंवरों में डूबता-उतराता, अपने घावो को चाटकर ठीक करता, बढ़ता काल... देसी अस्मिता का महाकाव्य यह उपन्यास भारत के जातीय 'स्व' का बहुस्तरीय, बहुमुखी, बहुवर्णी उत्खनन है! यह n गौरव के किसी जड़ और आत्ममुग्ध आख्यान का परिपोषण करता है, n 'अपने' के नाम पर संस्कृति की रंगों में रेंगती उन दीमकों का तुष्टिकरण, जिन्होंने 'भारतवर्ष' को भीतर से खोखला किया है! यह उस विरत इकाई को समग्रता में देखते हुए चलता है जिसे भारतीय संस्कृति कहते हैं! यह समूचा उपन्यास हममें से किसी का भी अपने आप से संवाद हो सकता है- अपने आप से और अपने भीतर बसे यथार्थ और नए यथार्थ का रास्ता खोजते राष्टों से! इसमें अनेक पात्र हैं, लेकिन उपन्यास के केंद्र में वे नहीं, सारा समाज है, वही समग्रता में एक पत्र की तरह व्यव्हार करता है! पात्र बस समाज के सामूहिक आत्म के विराट समुद्र में ऊपर जरा-जरा-सा झाँकती हिम्शिलाए हैं! संवाद भी, पूरा समाज ही करता है, लोग नहीं! एक क्षरशील, फिर भी अडिग समाज भीता गूंजती, और 'हमें सुन लो' की प्रार्थना करती जीने की जिद की आर्ट पुकारें! कृषि संस्कृति, ग्राम व्यवस्था और अब, राज्य की आकंठ भ्रष्टाचार में लिप्त नई संरचना-सबका अवलोकन करती हुई यह गाथा-इस सबके अलावा पाठक को अपनी अंतड़ियो में खींचकर समो लेने की क्षमता से समृद्ध एक जादुई पाठ भी है!

© 2018 Storyside IN (Audiobook): 9789352843725

Release date

Audiobook: 1 February 2018

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