लेखक प्रवीण झा शहरों और देशों के विचित्र पहलूओं में रुचि रखते हैं। सफर की इस किताब में वे नीदरलैंड के नास्तिकों की तफ़्तीश में है। इस सफर में वह नास्तिकों, गंजेड़ियों और नशेड़ियों से गुजरते वेश्याओं और डच संस्कृति की विचित्रता पर आधी नींद में लिखते नजर आते हैं। किताब का ढाँचा उनकी चिर-परिचित खिलंदड़ शैली में है, और विवरण में सूक्ष्म भाव पिरोए गए हैं। यह एक यात्रा-संस्मरण न होकर एक मन में चल रहा भाष्य है। भिन्न संस्कृतियों के साम्य और द्वंद्व का चित्रण है। इसी कड़ी में उनका सफर एक खोई भारतीयता का सतही शोध भी करता नजर आता है।
Release date
Audiobook: 30 December 2020
लेखक प्रवीण झा शहरों और देशों के विचित्र पहलूओं में रुचि रखते हैं। सफर की इस किताब में वे नीदरलैंड के नास्तिकों की तफ़्तीश में है। इस सफर में वह नास्तिकों, गंजेड़ियों और नशेड़ियों से गुजरते वेश्याओं और डच संस्कृति की विचित्रता पर आधी नींद में लिखते नजर आते हैं। किताब का ढाँचा उनकी चिर-परिचित खिलंदड़ शैली में है, और विवरण में सूक्ष्म भाव पिरोए गए हैं। यह एक यात्रा-संस्मरण न होकर एक मन में चल रहा भाष्य है। भिन्न संस्कृतियों के साम्य और द्वंद्व का चित्रण है। इसी कड़ी में उनका सफर एक खोई भारतीयता का सतही शोध भी करता नजर आता है।
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Audiobook: 30 December 2020
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Dr Ankit
24 Aug 2021
न यह किताब आपको समूक दर्शन कराती है, न ही शब्दों में फसा के कोशिश करती है के आप खुद को नीदरलैंड में महसूस करें। यह किताब मनोरंजन करती है, कुछ जगह हँसाती है, और बहुत सारी जगह मति-मंथन करवाती है, ज्ञान और जिज्ञासा से। प्रवीण कुमार झा सर् ने एक नया प्रशंसक पा लिया है। उनकी चमनलाल की डायरी Storytel पर आने की प्रतीक्षा रहेगी।
Rahul
9 Feb 2023
Apratim …!
Sachin
12 Aug 2021
Very short but nicely written
Prakash
21 Aug 2023
रोचक और ज्ञानवर्धक
Madan
25 Feb 2021
Nice book.
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